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पहले सताता था बेदखली का डर, अब हो गए है बेफिकर वन अधिकर पत्र से दूर हुई राजू,सस्तु और जलसु और रमेश सहित परिवार की चिंता


 पहले सताता था बेदखली का डर, अब हो गए है बेफिकर वन अधिकर पत्र से दूर हुई राजू,सस्तु और जलसु और रमेश सहित परिवार की चिंता
पहले सताता था बेदखली का डर, अब हो गए है बेफिकर वन अधिकर पत्र से दूर हुई राजू,सस्तु और जलसु और रमेश सहित परिवार की चिंता
03-08-19 07:01:08         sourabh tripathi


जशपुरनगर  03 अगस्त 2019/पर्वतीय इलाकों और जंगलों के बीच निवास करने वाले राजूराम और उसकी पत्नी निरन्ति बाई को अपने घर के आसपास रहने वाले वन्यप्राणियों से जितना डर नही लगता था उससे ज्यादा खौफ अपने आशियाने के कभी भी उजड़ने को लेकर था। दरअसल यह खौफ घर के कभी भी टूटने या वनभूमि के नाम से बेदखल किये जाने को लेकर रहता था। राजूराम को वहाँ रहते भले ही 6 से 7 दशक हो गए थे, लेकिन उसके पास अपने घर का कोई ऐसा ठोस दस्तावेज नही था जिसकों वह आधार बनाकर अपना दावा को और मजबूत कर सके। पास ही रहने वाले सस्तु राम, जलसु राम और रमेश का परिवार भी इसी तरह डर के साये में रहता था। सबकों अपने घर का पुख्ता दस्तावेज चाहिए था, इसके बिना उसके घर की कीमत न के बराबर थी। उन्हें भी लगता था कि कही वन विभाग वन भूमि बताकर बेदखली का नोटिस न थमा दे,तब वे कहा जायेंगे। पट्टा के लिये आवेदन देने के पश्चात मांग निरस्त होने पर सबकी चिंता और भी बढ़ गयी थी, लेकिन राज्य शासन द्वारा निरस्त आवेदन की समीक्षा के निर्देश के बाद राजूराम,जलसुराम और सस्तु राम को घर का वन अधिकार पत्र मिल गया। अब चूंकि घर का पुख्ता दस्तावेज मिल गया है ऐसे में जंगलों और पहाड़ों के बीच बसे इन परिवारों का बेदखली का डर न सिर्फ मिट गया है इन्हें सुख चैन से जीवनयापन करने में भी आसानी हो रही है।
           जशपुर विकास खंड के ग्राम सारूडीह का कुछ इलाका वनों एवं पर्वतों से घिरा है। हरियाली के बीच अक्सर शांत माहौल एवं हरा भरा नजर आने वाले इस इलाके में कई दशक पहले बहुत से परिवार पर्वत और जंगल के आसपास बस गए थे। अन्य पिछड़े वर्ग से आने वाले अधिकांश परिवार का किसी तरह मजदूरी से जीवनयापन तो चलता रहा लेकिन एक-एक रुपये जोड़कर मेहनत के पैसे से तैयार आशियाने के उजड़ने को लेकर हमेशा चिंता बनी रहती थी। यहाँ रहने वाले राजूराम लोहार ने बताया कि लगभग 70 साल हो गए है उन्हें और उनके परिवार को यहाँ रहते हुए। घर का दस्तावेज नही था ऐसे में वन विभाग द्वारा बेदखल करने का डर बना रहता था। हमारी मांग थी कि हमें भी अपने घर का पट्टा मिले ताकि बिना किसी चिंता के जीवनयापन कर सके। अब यह मांग पूरी हो गई है। अब हमें कोई डर नही है। राजूराम की पत्नी निरन्ति बाई का कहना था कि हमें आसपास के जंगली जानवरों का डर नही रहता,लेकिन घर का पट्टा नही होने से जंगली जानवरों के खौफ से भी ज्यादा डर और संशय घर टूटने का बना रहता था। निरन्ति बाई का कहना है कि अच्छा है छत्तीसगढ़ की सरकार ने वनभूमि में काबिज परिवारों को वन अधिकार पट्टा देने का निर्णय लिया। इससे  हम जैसे बहुत से परिवार जो चिंता में डूबे है उनको राहत मिलेगी। राजूराम को 0.008 हेक्टेयर भूमि का वन अधिकार पत्र मिला है। इसी तरह ग्राम सारूडीह के ही रमेश राम को 0.024 हेक्टेयर भूमि का,सस्तु राम को 0.020 और जलसु राम को 0.024हेक्टेयर भूमि का वन अधिकार पत्र मिला है। सस्तु राम की पत्नी बालमति यादव ने कहा कि घर का पट्टा मिल जाने से उसके और बच्चों का एक आधार बन गया है। यह हमार निश्चित ठिकाना है अब और भी बेफिक्र होकर दूसरे कार्यों में अपना ध्यान लगा सकते है। वन अधिकार पत्र प्रदान करने के लिये उन्होंने शासन-प्रशासन का आभार भी माना।





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