धर्म और संस्कार की राह पर चलकर शून्य से शिखर पर पहुंचे स्व. हनुमान प्रसाद जैन
# वे सर्व समाज के प्रति समर्पित,श्रेष्ठ एवं आदर्श व्यक्तियों की श्रृखला में सदैव रहे अग्रणी
जशपुर। स्मृतिशेष श्री हनुमान प्रसाद जैन (बड़जात्या) जशपुर का जीवन परिचय का मोहताज नहीँ है. गत 19 मई को उनकी देह पंचतत्व में विलीन हो गई लेकिन वे लोगों की याद में अमर रहेंगे।
दानवीर भामाशाह, श्रावक श्रेष्ठी एवं आचार्य श्री द्वारा लाभांडी पंचकल्याणक महा महोत्सव के दौरान भरी सभा में मंच से दी गई यजमान जैसी विभिन्न विशेष उपाधियों से अलंकृत धर्मानुरागी स्वर्गीय हनुमान प्रसाद जी बड़जात्या का नाम, जीवनरूपी साधना का श्रेष्ठ विचार धारण कर, न केवल जैन समाज अपितु सर्वस्व समाज के प्रति समर्पित आदर्श व्यक्तियों की श्रृखला में अग्रणी रहा है।
वर्ष 1936 में चारणवास (राजस्थान) निवासी श्रीमान बिसनलाल जी के द्वितीय सुपुत्र के रूप में जन्में आप श्री को अपने पिता के द्वारा स्वधर्मरत रहने का श्रेष्ठ संस्कार विरासत में मिली। प्राथमिक स्तर की स्कूली शिक्षा प्राप्त करने के उपरांत अल्पायु में ही व्यवसाय के प्रति रूचि एवं अपनी इच्छाओं के अनुरूप कुछ भी कर गुजरने के जिद्दी स्वभाव के कारण आपका प्रारंभिक जीवन संघर्षमय रहा। इसी तारतम्य में सन् 1954 में 18 वर्ष की आयु में आप ग्राम सन्ना जशपुर आ गये जब सन्ना को काला पानी के रूप में जाना जाता था घनघोर जंगल आदिवासी बहुल यह क्षेत्र वर्ष में 6 माह भारी बारिश के कारण टापू में तब्दील हो जाता था, आवागमन के पर्याप्त साधन नहीं थे यदा-कदा पैदल या सायकिल कभी - कभी घुड़सवारी जैसी व्यवस्थाओं को उपयोग कर कठिन एवं विषम परिस्थितियों से जूझते हुए आपने गल्ला किराना का व्यवसाय प्रारंभ किया। इसी मध्य सन् 1956 में 20 वर्ष की आयु में बधाल (राजस्थान) निवासी श्रीमान जयनारायण जी गंगवाल की सुपुत्री एवं स्व. भागचंद जी सौभागमल जी. जशपुर में प्रकाश चंद जी रतनलाल जी गंगवाल की बहन भंवरी देवी के साथ आपका विवाह सम्पन्न हुआ जो अपने संपूर्ण जीवनकाल में परिवार के प्रति समर्पित धर्मपरायण महिला थी। धर्मपत्नी ने वर्ष 2001 में आपका साथ छोड़ दिया। यह घटना अत्यंत दुखद, असामिय एवं अप्रत्याशित थी।
फिर भी अपने कद काठी, दबंग आवाज, साहसी व्यक्तित्व, अनुभव एवं सकारात्मक विचारधारा के कारण जीवन में आये इन उतार-चढ़ावों का दृढ़तापूर्वक सामना करते हुए आपने पुत्रों के साथ गल्ला किराना, ठेकेदारी, बस ट्रान्सपोर्ट सर्विस, राईस मिल लॉज होटल, कोल्ड स्टोरेज टोल टेक्स वसूली ठेका का संचालन एंव आयात-निर्यात के व्यवसाय में उत्तरोत्तर प्रगति की ओर अग्रसर होते रहे।
श्री हनुमान प्रसाद जी तीन पुत्र राजकुमार सुधा देवी नागपुर, विनोद कुमार संजना - रायपुर, दिलीप कुमार सीमा जशपुर एवं चार पुत्रियों पुष्पा देवी जो वर्तमान में आचार्य श्री के - आशीर्वाद से साधिका का जीवन व्यतीत कर रही है उनके पति विमल भईया जी नेमावर में ब्रम्हचारी व्रत पालन कर रहे है, और इन्दौर निवासी है तथा स्नेहलता एवं स्व. राजेन्द्र काला जयपुर, ममता - सुरेश सेठी कोलकाता एवं शानू अमित पाटोदी सूरत के सौभाग्यशाली पिता थे । सफल, सुखद, धार्मिक, पारिवारिक एवं व्यवसायिक जीवन जीते हुए आप समाज सेवा के क्षेत्र में भी सदैव अग्रणी रहे। दशको से जशपुर में जैन विद्यालय, जैन औषधालय के अध्यक्ष रहने के साथ यहाँ के दिगम्बर जैन समाज के अध्यक्ष एवं सरंक्षक भी रहे। साथ ही साथ अन्य प्रांतो में श्री सम्मेदशिखर जी में गुणायतन के ट्रष्टी के एवं जबलपुर में आचार्य श्री की पूर्णायु संस्था तथा छत्तीसगढ़ के एक मात्र चन्द्रगिरी तीर्थ क्षेत्र के संरक्षक भी थे। स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में रोगियों के लिए निःशुल्क एम्बुलेंस सुविधा, कोरोना काल में प्रभावित मरीजो एवं उनके परिजनों के लिए शुद्ध एवं उत्कृष्ट भोजन की व्यवस्था, गर्मी के मौसम में नगर में पीने के पानी के लिए टैंकर की व्यवस्था, नगर सौदर्यीकरण हेतु तालाब के गहरीकरण एवं स्वच्छता हेतु योगदान शिक्षा के क्षेत्र में डोंगरगढ़ प्रतिभा स्थलीय में जरूरतमंद बच्चों कि पढ़ाई के लिए प्रतिवर्ष फीस की व्यवस्था जैसे कार्यों में आपकी अभिन्न रूचि, सामाजिक सेवा भावना के उदाहरण है। इन सब के अलावा आपने जशपुर के माटीपुत्र आचार्य श्री सौरभ सागर जी महाराज की प्रेरणा से स्कूल निर्माण के लिए स्वयं आगे आकर सर्वप्रथम 3.22 एकड़ भूमि दान देकर इनकी नींव रखी। -
जैन धर्म के प्रति अगाध श्रद्धा एवं धर्मपरायणता को आपने अपने जीवन में सर्वोच्च स्थान दिया। लाभांडी रायपुर में सफेद मकराना मार्बल से भव्य मंदिर जी का निर्माण, सन्ना में भी स्वय की जमीन पर जिनालय का निर्माण, जशपुर मंदिर जी में लाल पत्थर से निर्मित मुख्य द्वार इसके उदाहरण है। श्री सम्मेद शिखर जी सिद्ध क्षेत्र आने जाने का प्रमुख मार्ग होने के कारण जशपुर जैन समाज का यह सौभाग्य है कि यहाँ साधु संतो का आवागमन निरंतर होता रहता है। विहार में होने वाली स्थान संबंधी समस्या के दृष्टिगत उनकी आहारचर्या एवं विश्राम हेतु चरईडांड एवं महुवाटोली में आचार्य विद्यासागर संत निवास का निर्माण कराकर आपने सामाजिक दायित्व का निर्वहन किया।
वर्तमान के भगवान परम पूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज का हनुमान प्रसाद जी एवं उनके परिवार को विशेष आर्शीवाद प्राप्त होता रहा है। आचार्य श्री से जुड़ने के बाद उनके चार्तुमास में कई बार आप कलश स्थापना कर पुण्यार्जन करते रहे। अभी-अभी वर्तमान में डोंगरगढ़ तीर्थ क्षेत्र के लिए एक टावर क्रेन आपके द्वारा दान में दी गई है जिससे वहां बंसीपहाड़ के लाल पत्थरो से बन रहे 171 फीट ऊंचे विशालकाय मंदिर जी के निर्माण को गति मिलेगी।
श्री हनुमान प्रसाद जी के जीवन से जुड़े ऐसे कई कार्य है, घटनाएँ है जो उनको सदैव औरों से अलग दर्शाती थी वे ऊपर से जितने कठोर दिखते थे उससे अधिक अंदर से विनम्र एवं भावुक स्वाभाव के थे। जब भी वे किसी को गंभीर स्थिति में देखते थे तो उनका दिल पसीज जाता था और उसकी मदद के तत्पर हो जाते थे । यहाँ उनके जीवन का संपूर्ण उल्लेख कर पाना संभव नहीं है। सदैव अनुशासित और अपने विचारों के प्रति दृढ़संकल्पित जीवन जीने वाले हनुमान सेठ आज हमारे बीच नहीं है लेकिन उनकी स्मृतियाँ उनसे जुड़े लोगों के मानस पटल से कभी विस्मृत नहीं हो पायेगी इसमें संदेह नहीं है।
जीवन के अंतिम क्षणों में देवलोक गमन के पूर्व रात में उनके परिवारजनों द्वारा अस्पताल की व्यवस्था के अनुरूप जब उन्हे णमोकार मंत्र धीरे-धीरे सुनाया जा रहा था तब उन्होने कहा जोर से बोलो। उसी समय उनको चारो प्रकार के आहार पानी त्याग कमरे के बाहर सभी दिशाओं का त्याग तथा शरीर एवं बिस्तर पर दवा के साथ जो भी चीजें है उनको छोड़ कर सभी प्रकार की दवाओं का और आरंभ परिग्रहों का त्याग करा दिया गया था। जिससे निश्चित ही उनकी आत्मा को सदगति प्राप्त हुई है ऐसा हम सभी ईश्वर के प्रति विश्वास प्रकट करते है।
परमपिता परमेश्वर जिनेन्द्र देव से यही प्रार्थना है कि उन्हें अपने चरणों में स्थान दे एवं उनके परिवार को जीवन पर्यन्त उनका अनुशरण करने की दृढ़ इच्छाशक्ति, धैर्य एवं संबल प्रदान करे ।
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