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संतान की लम्बी उम्र और सुख- समृद्धि की कामना के लिए महिलाओं ने रखा निर्जला जितिया व्रत -


 संतान की लम्बी उम्र और सुख- समृद्धि की कामना के लिए महिलाओं ने रखा निर्जला जितिया व्रत -
संतान की लम्बी उम्र और सुख- समृद्धि की कामना के लिए महिलाओं ने रखा निर्जला जितिया व्रत -
18-09-22 08:38:09         sourabh tripathi



जशपुर / पत्थलगांव
संतान के सुख-समृद्धि की कामना के लिए रखा जाने वाला जितिया व्रत काफी कठिन माना जाता है, इस दिन महिलाएं अपने संतान की लंबी आयु की कामना के लिए पूरे दिन निर्जला उपवास रखती हैं. इस व्रत की पूजा तीन दिनों में संपन्न होती है. व्रत की शुरुआत आश्विन मास के कृष्णपक्ष की सप्तमी वाले दिन नहाय खाए से होती है. इस दिन महिला सूर्यास्त के बाद कुछ भी नहीं खाती हैं. इसके बाद अष्टमी के दिन विधि-विधान से निर्जला व्रत रखने के बाद नवमी तिथि वाले दिन व्रत का पारण किया जाता है।
सनातन धर्म में संतान प्राप्ति और उनकी मंगल कामना के लिए कई तरह के व्रत और पर्व का जिक्र किया जाता है जिनमें से एक है जितिया पर्व। हिन्दू पंचांग के अनुसार प्रत्येक वर्ष आश्विन माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को जितिया व्रत किया जाता है। हर साल महिलाएं अपनी संतान की सुख समृद्धि और दीर्घायु होने की कामना के साथ ये व्रत रखती हैं। मान्यता है कि जितिया व्रत करने से संतान की लंबी उम्र होती है और उनके जीवन में किसी भी प्रकार की विपदा नहीं आती है। जितिया व्रत के दिन व्रत रखकर संध्याकाल में अच्छी तरह से स्न्नान किया जाता है और पूजा की सारी वस्तुएं लेकर पूजा स्थल जाकर कथा श्रवण कर सामूहिक गीत गाकर महिलाओ ने संतान के लिए मंगल कामना की जाती है। 
जीवित्पुत्रिका व्रत का महत्व -
धर्म शास्त्रों के अनुसार, इस व्रत को संतान प्राप्ति, उनकी लंबी आयु और सुखी निरोग जीवन की कामना के साथ किया जाता है। इस व्रत को करने से संतान के ऊपर आने वाले कष्ट दूर होते हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार महाभारत के युद्ध में अपने पिता की मौत के बाद अश्वत्थामा बहुत नाराज हो गया था। अश्वत्थामा के हृदय में बदले की भावना भड़क रही थी। इसी के चलते वह पांडवों के शिविर में घुस गया। शिविर के अंदर पांच लोग सो रहे थे। अश्वत्थामा ने उन्हें पांडव समझकर मार डाला। वे सभी द्रोपदी की पांच संतानें थीं। फिर अर्जुन ने अश्वत्थामा को बंदी बनाकर उसकी दिव्य मणि छीन ली। अश्वत्थामा ने बदला लेने के लिए अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चे को गर्भ को नष्ट कर दिया। ऐसे में भगवान श्रीकृष्ण ने अपने सभी पुण्यों का फल उत्तरा की अजन्मी संतान को देकर उसको गर्भ में फिर से जीवित कर दिया। गर्भ में मरकर जीवित होने के कारण उस बच्चे का नाम जीवित्पुत्रिका पड़ा। तब से ही संतान की लंबी उम्र और मंगल के लिए जितिया का व्रत किया जाने लगा।




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